कब्बाली

कब्बाली भजन

परमपद चलत किये उपदेश, श्रीमद्रामानुज यतिराजा ।। टेर ।।
सुनो श्री वैष्णव समुदाई, गुरुपरंपरा को भाई। 
सब पा करो मन लाई, श्री जी वैकुण्ठ मिलन के काजा ।। १
विषयोंसे चित्त निवारो, मन्त्र जप अर्थ विचारो । 
हरिचरण कमल चित धारो, (जी) भवसिन्धु तिरनके काजा ।। २
करूँ भक्त जनोंकी सेवा, जो चारों फलकी देवा । 
सेवाते मिलत है मेवा जी, समझाय कहत फणिराजा ।। ३
जो विधि सब मिलि चलि हो, सियाराम चरण मन धरि हो। 
वैकुण्ठ नगर पग धरि हो जी, देवतान बजे हैं बाजा ।। ४

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