भजन सत्संग का
आवो आवो हे मेरे प्यारे, करलो कुछ सत्संग
बड़े भाग्य से पाया तुमने, मानुषका यह जन्म।
सत्संगत में निशादिन बैठो, सीखो अच्छे ढंग ।। १
।। टेर ।।
विद्वानों की सत्संगत मे, बहती ज्ञान तरंग,
पाप धोय उसकी धारा में, निर्मल करलो अंग ।। २
मूर्ख का मुख बंबी कहिये, निकसत वचन भुजंग।
ताकी औषध मौन बतावे, विष नहीं ब्यापे अंग ।। ३
सजनों की सेवा में निशादिन घुटे ज्ञान का रंग।
तन-मन अपना उस में रंगलो और नहीं प्रसंग ।। ४