श्रीरामानुजस्तोत्रम्

 श्रीमते रामानुजाय नमः 

श्रीरामानुजस्तोत्रम् 

हे रामानुज हे यतिक्षितिपते हे भाष्यकार प्रभो
      हे लीलानरविग्रहानघ विभो हे कान्तिमत्यात्मज ।
हे श्रीमन् प्रणतार्तिनाशन कृपामात्रप्रसन्नार्य भो
      हे वेदान्तयुगप्रवर्तक परं जानामि न त्वां विना ॥ १॥
हे हारीतकुलारविन्दतरणे हे पुण्यसङ्कीर्तन
      ब्रह्मध्यानपर त्रिदण्डधर हे भूतिद्वयाधीश्वर ।
हे रङ्गेशनियोजक त्वरित हे गीश्शोकसंहारक
      स्वामिन् हे वरदाम्बुदायक परं जानामि न त्वां विना ॥ २॥
हे श्रीभूतपुरीश लक्ष्मणमुने हे यादवापादिता-
      पार्थार्थद्रुमकृन्तनोग्रपरशो हे भक्तमन्दारक ।
हे ब्रह्मासुरमोचनक्षम कृपाकूपार हे सज्जन-
      प्रेष्ठामोघयतीन्द्रदेशिक परं जानामि न त्वां विना ॥ ३॥
हे पूणार्य कृपाप्तसद्द्वयमनो मालाधरानुग्रहात् 
      ज्ञातद्राविडवेदतत्त्व सुमते मन्नाथपृथ्वीधर ।
काञ्चीपूर्णवरेण्यशिष्य भगवन् हे केशवस्यात्मज
      श्रीपद्मेशपदाब्जषट्पदपरं जानामि न त्वां विना ॥ ४॥
हे गोपीजनमुक्तिदानकर हे शास्त्रार्थतत्त्वज्ञ हे
      गोष्ठीपूर्णकृपागृहीतविलसन्मन्त्राधिपाहस्कर ।
हेऽनन्तेष्टफलप्रदायक गुरो हे विठ्ठलेशार्चित
      हे बोधायन सूत्रसन्मत परं जानामि न त्वां विना ॥ ५॥
हे गोपालक हे कृपाजलनिधे हे सिन्धुकन्यापते
      हे कंसान्तक हे गजेन्द्रकरुणापारीण हे माधव ।
हे रामानुज हे जगत्रयगुरो हे पुण्डरीकाक्ष मां
      हे गोपीजननाथ पालय परं जानामि न त्वां विना ॥ ६॥
हे राम पुरुषोत्तम नरहरे नारायण केशव
      गोविन्द गरुडध्वज गुणनिधे दामोदर माधव ।
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते
      हे वैकुण्ठपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहि माम् ॥ ७॥
इति श्रीरामानुजस्तोत्रं सम्पूर्णम् 

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