॥ श्रीसुदर्शनाष्टकम् ॥

॥ श्रीसुदर्शनाष्टकम् ॥

प्रतिभटश्रेणिभीषण वरगुणस्तोम भूषण
जनिभय स्थानतारण जगदवस्थानकारण ।
निखिलदुष्कर्मकर्शन निगमसद्धर्मदर्शन
जय जय श्रीसुदर्शन जय जय श्रीसुदर्शन ॥१॥
शुभजगद्रूपमण्डन सुरगणत्रासखण्डन
शतमख ब्रह्मवन्दित शतपथब्रह्मनन्दित ।
प्रथित विद्वत्-सपक्षित भवदहिर्बुध्न्यलक्षित
जय जय श्रीसुदर्शन जय जय श्रीसुदर्शन ॥२॥
स्फुटतटिज्जालपिञ्जर पृथुतरज्वालपञ्जर
परिगतप्रत्नविग्रह परिमितप्रज्ञदुर्ग्रह ।
प्रहरण ग्राममण्डित परिजनत्राण पण्डित
जय जय श्रीसुदर्शन जय जय श्रीसुदर्शन ॥३॥
निजपदप्रोत सद्गण निरुपधि स्फीत षड्गुण
निगमनिर्व्यूढवैभव निजपरव्यूहवैभव ।
हरिहयद्वेषि दारण हरपुरप्लोषकारण
जय जय श्रीसुदर्शन जय जय श्रीसुदर्शन ॥४॥
दनुजविस्तार कर्तन जनितमिस्राविकर्तन
दनुजविद्या निकर्तन भजदविद्या निवर्तन ।
अमरहृष्टस्वविक्रम समरजुष्टभ्रमिक्रम
जय जय श्रीसुदर्शन जय जय श्रीसुदर्शन ॥५॥
प्रतिमुखालीढबन्धुर पृथुमहाहेतिदन्तुर
विकटमायाबहिष्कृत विविधमाला परिष्कृत ।
पृथुमहायन्त्र तन्त्रित दृढदयातन्त्रयन्त्रित
जय जय श्रीसुदर्शन जय जय श्रीसुदर्शन ॥६॥
महित संपत्-सदक्षर विहित संपत्-षडक्षर
षडारचक्रप्रतिष्ठित सकलतत्वप्रतिष्ठित ।
विविधसङ्कल्पकल्पक विबुधसङ्कल्पकल्पक
जय जय श्रीसुदर्शन जय जय श्रीसुदर्शन ॥७॥
भुवननेतस्त्रयीमय सवन तेजस्त्रयीमय
निरवधिस्वादुचिन्मय निखिलशक्ते जगन्मय ।
अमित विश्वक्रियामय शमित विष्वग्-भयामय
जय जय श्रीसुदर्शन जय जय श्रीसुदर्शन ॥८॥
द्विचतुष्कमिदं प्रभूतसारं पठतां वेङ्कटनायकप्रणीतम् ।
विषमेऽपि मनॊरथः प्रधावन् न विहन्येत रथाङ्गधुर्यगुप्तः ॥९॥
॥ इति श्रीसुदर्शनाष्टकम् ॥

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